ये जिन्दगी तू यू न सता
ये दिल मेरा नाजुक है
कमबख्त ये टूट जायेगा।
करो रहम थोड़ा इसपे,
वरना ये टूट कर बिखर जायेगा।
अब किनसे मांगू मानते,
हर दर से मांग के हर गया।
अब सुख रहा विश्वास का दरिया,
लगता है ऊपरवाले भी मुझसे रूठ गया है।
ये जिंदगी जरा कर रहम मुझपे,
अब और कितना सताएगा।
आंसु भी मेरा सुख रहा है,
अब और कितना रुलाएगा।
हे ऊपरवाले मेरी किस्मत लिखते हुए,
तुम्हे जरा भी दया न आई।
लिख दिया सिर्फ दुःख और दर्द किस्मत में,
आखिर किस गुनाह की सजा मैने पाई।
मैं इस जमाने से रूबरू होने चला था
देख उसकी हकीकत को मैं दंग रह गया।
यहां हर कोई किसी न किसी तरह परेशान है,
फिर मैं क्यों अपने किस्मत से नाराज़ हु।
सोचता हु शायद ये लम्हे
कुछ नया एहसास दिलाएगी
बदलेगा ये दुःख का मंजर
शायद कोई नया गुल खिलाएगी।
सुन जिंदगी अब और कितना रुलाएगा
कोई ला नया मंजर जिंदगी में मेरे
और कितना दर्द के साए में सुलाएगा।
न जाने क्यों दुःख मेरा
घटता नही
रोज परेशानियां बढ़ती
जाती है
लाख सुलझाऊ सुलजाता नही
ये दर्द मेरा घटता नही।
ये जिंदगी और कितना सताएगा
ये दुखती मंजर को कब तक हटाएगा।
कुछ तो नया होने दे जिंदगी में
मेरे घर के परेशानियां को तो सुलझाने दे।
जमाने के सितम अब सहा नही जाता,
ना जाने क्यों लोग मेरे दुश्मन बने है ।
परछाई भी कभी कभी साथ नही देता
कैसे कटेगा मेरा जिंदगी
यही बात सताए जा रहा है।