Love poetry in Hindi
कोई पागल ही मुझे मोहब्बत से नवाज़ेगा
रास्ते जो भी चमक-दार नज़र आते हैं
सब तेरी ओढ़नी के तार नज़र आते हैं
कोई पागल ही मोहब्बत से नवाज़ेगा मुझे
आप तो ख़ैर समझदार नज़र आते हैं
मैं कहाँ जाऊँ करूँ किस से शिकायत उस की
हर तरफ़ उस के तरफ़-दार नज़र आते हैं
ज़ख़्म भरने लगे हैं पिछली मुलाक़ातों के
फिर मुलाक़ात के आसार नज़र आते हैं
एक ही बार नज़र पड़ती है उन पर ‘ताबिश’
और फिर वो ही लगातार नज़र आते हैं
–ज़ुबैर अली ताबिश
हम किसी की यादों में…
कोई किसी को समूचा नहीं याद रहता
टुकड़ों टुकड़ों में ही याद रहता है
किसी की यादों में
अच्छी याद बन कर रहता है
किसी की यादों में बुरी याद बन कर
हम हर किसी के साथ समूचे जीते भी नहीं है
हमारा किरादार
हर इंसान के साथ अलग अलग रहता है
टुकड़ों में जीते-जीते
सिर्फ़ हम अपने प्रेमी को समूचे मिलते हैं
अपनी कमियों और खूबियों के साथ
फिर भी अंत में
वो हमें टुकड़ों में याद करता है
उसे याद रहता है
हमारे अक्स का सबसे सुंदर टुकड़ा
जो कि प्रेम है
पैरों तले चल पड़ी ये ज़मीन
रोते-रोते
ठहरे रहें वही हम मगर
पैरों तले चल पड़ी ये ज़मीन
जाना नहीं था जिस गली
लगता है हम जा रहे हैं वहीं
हमारे भरोसे न छोड़ो हमे
कि आवाज़ देकर रोको हमें
आवारगी ले चली है वहाँ पे
जहाँ होश में कोई जाता नहीं
आवारगी ले चली है वहाँ पे
जहाँ होश में कोई जाता नहीं
ठहरे रहें वही हम मगर
पैरों तले चल पड़ी ये ज़मीन
निगाहों को जचता नहीं है कोई
तुम्हारी यूँ आदत हुई
कोई खेल हमसे खेला गया
कोई तो शरारत हुई
आईने सभी हुए अजनबी
हम इतना तो बदले नहीं थे कभी
बेख़्यालियाँ हैं घेरे हुए
हम ऐसे तो पहले नहीं थे कभी
ये हम हैं या फिर कोई और ही है
ये भी समझ अब तो आता नहीं
आवारगी ले चली है वहाँ पे
जहाँ होश में कोई जाता नहीं
ठहरे रहें वही हम मगर
पैरों तले चल पड़ी ये ज़मीन
स्त्री की अनुपम कलाएं..
जल्द नाराज़ हो जाने वाले पुरुष
वंचित रह गए
स्त्री के आमोद और प्रमोद से..
बेहद हिदायती पुरुषों ने
नही देखा
स्त्री का जश्न..
आवश्यकता से अधिक मितव्ययी पुरुष
जान ही न पाए
स्त्री का उल्लास और उमंग ..
पुरुषों का अहं
बंधा रहा उनकी आंखों पर पट्टी बन
वे नहीं देख पाए
स्त्री की अनुपम कलाएं..
पुरुषों की उदासीनता ने
राग की स्रोतस्विनी पर
उदासी का बांध बनाया..
अपनी हर इच्छा को बलात् थोपने वाले पुरुष
अनुभूत नहीं कर पाए
स्त्री प्रेम की प्रगाढ़ता…
समय निरा शोर रहा बहता गया
अनन्त संभावनाओं और सपनों के आवरण में ढकी एक अनोखी नदी यूँ ही सूखती गई..
मैं एक आसमां हूँ।
बूंद-बूंद गिरती ओस में, एक सवेरा बसता है,
फूलों की मुस्कान में, मेरा मन हंसता है।
साँझ की लाली, जब गगन में घुल जाती है,
मन की चुप्पी भी, कुछ बातें कह जाती है।
पवन के हर झोंके में, कोई गीत बसा है,
जग की हर हलचल में, मेरा मीत बसा है।
मैं कविता हूँ, मैं एहसासों का कारवां हूँ,
खुद की रोशनी में चमकता, मैं एक आसमां हूँ
— ईशा अग्रवाल
अब मैं कोरा कागज़ ढूंढ रही हूं…
कोरा कागज़ सा जो होता तू
मैं उस पर रचती नई दास्तान।
तेरी हर सतर में मैं ढूंढती
खुद की कोई अनसुनी पहचान।
अगर तू होता किसी किताब सा
कई कहानियों का बसेरा।
तो सोचती मैं किस पन्ने पर
लिखूं अपने सपनों का सवेरा।
पर हर पन्ना भरा हुआ था
तेरी कहानियों के शब्दों से।
कोई कोना खाली न छोड़ा
तूने अपने जज़्बातों से।
मैं ढूंढती एक रिक्त स्थान
जहां गढ़ सकूं अपनी कहानी।
पर तेरी किताब के हर पृष्ठ पर
लिखी थी पहले से जुबानी।
अब मैं कोरा कागज़ ढूंढ रही हूं
जहां लिख सकूं अपनी दास्तान।
तुझसे आगे के पन्नों पर
बुने सपनों का नया जहान।
–अंकिता सिंह
जीने का अंदाज
हम सूरज हैं हमको अपनी ताकत का अंदाज़ा है,
जिस दिन निकलेंगे अंबर से अंधियारे मिट जाएंगे!!
शहंशाह हो जाएं फिर भी ताज
अधूरा रहता है।
जिनके अपने जीने का अंदाज
अधूरा रहता है।
कल क्या होगा सोचकर
जो चिंताओं में डूबे हैं,
हमने देखा उन लोगों का आज
अधूरा रहता है।
– शशांक शेखर
सूख चुके हैं जज़्बात
सूख चुके हैं जज़्बात और आँखों से अश्क़ नहीं बहते,
रखते हैं कलम काबू में, कागज़ पर अल्फ़ाज़ नहीं रहते,
है शोर बड़ा इस दुनिया में, कौन सुनता यहां किसी की,
सीखे हम तजुर्बों से और ये लब अब कुछ नहीं कहते
आखिर चाहते क्या हो?
आखिर चाहते क्या हो?
खुशियों का समंदर या एक बूंद का ठहराव?
भागते हुए रास्ते या एक मोड़ का ठिकाना?
तो बताओ जो चाहते हो सब कुछ, आखिर वो ‘सब’ है क्या?
आखिर चाहते क्या हो?
पैसा, शोहरत, या किसी का साथ,
या वो पल, जो सिर्फ तुम्हारे हाथ?
जिनके लिए दौड़ रहे हो रात-दिन,
क्या कभी वही तुम्हारे सवालों का उत्तर बनेंगे?
आखिर चाहते क्या हो?
चाहते हो आसमान पर छा जाना,
पर ज़मीन पर टिकने की तमन्ना भी है।
हर ऊंचाई की चोटी पर सपने सजाते हो,
और हर गहराई में खोने का डर भी है।
आखिर चाहते क्या हो?
शब्दों का शोर या खामोशी भरी पहचान?
हजारों की तालियां,या एक की मुस्कान?
चाहत का अंत नहीं, पर जवाब शायद यही है—
तुम सिर्फ सुकून चाहते हो।
वो सुकून, जो ना मंजिल में है,
ना सफर में,वो सुकून, जो बस खुद के अंदर है।
तो अब सोचो,
आखिर चाहते क्या हो?
कोई और तुझे करीबी न लगे
बुरी नज़र तुझे मेरी न लगे,
ये प्यार मेरा दिल्लगी न लगे,
मैं तेरे पास रहूं या न रहूं,
कोई और तुझे करीबी न लगे,
नूर तेरा यूं बिखरे फ़लक पे,
चाँदनी रात भी चाँदनी न लगे,
चाहता हूं तुझे खुद से भी ज़्यादा,
बस इश्क़ मेरा, मतलबी न लगे,
मुश्किलों में साथ छोड़ जाऊंगा मैं,
मेरी जां, तुझे ऐसा कभी न लगे,
चेहरे बदलकर लोग देंगे सहारा,
कंधा तुझे गैरों का मखमली न लगे,
दिल लगे तेरा यूँ शायरी में मेरी,
बाद उसके तेरा कहीं पे जी न लगे.
मैं तन्हा नहीं, मगर हूँ,
हर शाम नया एक ख़्वाब लिए,
मैं निकला हूँ फिर से चाँद लिए,
मैं तन्हा नहीं, मगर तन्हा हूँ,
सर पे सितारों की बारात लिए,
न आँगन, न ठिकाना है कोई,
जाऊं कहां उसकी याद लिए,
न ठहरा कभी, न थक ही सका,
मैं आंखों में सौ जज़्बात लिए,
कभी ख़ाक हुआ, कभी भीग गया,
जीता हूं पलकों में बरसात लिए..
तू जो रहे मेरी तक़दीर में
साँसों की माला में पिरो दूँ तेरा नाम,
हर धड़कन में बसा दूँ तेरा एहसास।
इश्क़ की लौ से जलती हैं ये रातें,
तेरी यादों में कटते हैं ये दिन और ये साँस।
तेरी आँखों की गहराई में खोया रहूँ,
तेरी चाहत में खुद को ही भूल जाऊँ।
तू जो पुकारे, तो रूह तक काँप उठे,
तेरी आवाज़ से ही मैं जीता और मर जाऊँ।
मोहब्बत की राहों में तेरा साया मिले,
हर मोड़ पर तेरा अफ़साना लिखूँ।
तू जो रहे मेरी तक़दीर में,
तो हर लम्हा मैं दोबारा जी लूँ।
-Suhana Safar
बाकई में Heart Beat है तू
यदि Cycle ले आऊँ मंशा taxi की न कहना
बोलूँ आशियाँ झोंपड़ी को महल में न जा बसना
सींचूँ पसीने की बूँद से गर सूख जाए न हँसना
रचा है लहू की सुर्खी से बस नब्ज़ को न कसना
की है बंदगी कई फुट ग़लती से इंच न लिखना
बाकई में Heart Beat है तू होगी बिछोड़े से बंद चलना।
-राज सरगम
थे सिमटे कली से गुलशन में
वो पहली जादू की झप्पी
ताज़ा-तरीन साँसों में अभी
मांद हो चली थीं रश्मियाँ
जैसे छाँव के बरामदे में रवि
थे सिमटे कली से गुलशन में
बन गईं सुमन ख्वाहिशें दबी
था अंजान तआरुफ़ लफ़्ज़ों से
सीने से लगाने से हो गये कवि
होते हैं कष्ट गुमगश्ता झप्पी से
की छुअन ने मुकम्मल ये छवि।
-राज सरगम
मंडी सजी है
मंडी सजी है, हर दूल्हे का अपना दाम,
सौदा निबटे तो अच्छा वरना काम तमाम ।
दूल्हा गोरा भी है, काला भी है,
लम्बा भी है, नाटा भी है।
इंजीनियर भी डॉक्टर भी,
बैंक कर्मचारी, कंडक्टर भी है।
गारन्टी नहीं है माल की, कौन, कितना चलेगा,
निभे तो सात जन्म, वरना दो दिन में पत्ता कटेगा।
लाखों से ऊपर सब ने अपना दाम लगाया।
लड़की गोरी और हो पैसेवाली, ऐसा बताया ।
कौन बद-बख़्त तुझे छोड़ के जा सकता है
झूट कहते हैं कि आवाज़ लगा सकता है
डूबने वाला फ़क़त हाथ हिला सकता है
और फिर छोड़ गया वो जो कहा करता था
कौन बद-बख़्त तुझे छोड़ के जा सकता है
रास्ता भूलना ‘आदत है पुरानी उस की
या’नी इक रोज़ वो घर भूल के आ सकता है
शर्त इतनी है कि तू उस में फ़क़त मेरा हो
फिर तो इक ख़्वाब कई बार दिखा सकता है
आँख बुनती है किसी ख़्वाब का ताना-बाना
ख़्वाब भी वो जो मिरी नींद उड़ा सकता है
उस ने क्या सोच के सौंपा है कहानी में मुझे
ऐसा किरदार जो पर्दे भी गिरा सकता है
मेरे रज़्ज़ाक़ से करती है मिरी भूक सवाल
क्या यहीं रिज़्क़ के वा’दे को निभा सकता है
तुम न मानोगे मगर मेरे चले जाने पर
इक न इक रोज़ तुम्हें सब्र भी आ सकता है
– साजिद रहीम
ख़्वाब भी मिरे रुख़्सत हैं
चराग़-ए-राह बुझा क्या कि रहनुमा भी गया
हवा के साथ मुसाफ़िर का नक़्श-ए-पा भी गया
मैं फूल चुनती रही और मुझे ख़बर न हुई
वो शख़्स आ के मिरे शहर से चला भी गया
बहुत अज़ीज़ सही उस को मेरी दिलदारी
मगर ये है कि कभी दिल मिरा दुखा भी गया
अब उन दरीचों पे गहरे दबीज़ पर्दे हैं
वो ताँक-झाँक का मा’सूम सिलसिला भी गया
सब आए मेरी अयादत को वो भी आया था
जो सब गए तो मिरा दर्द-आश्ना भी गया
ये ग़ुर्बतें मिरी आँखों में कैसी उतरी हैं
कि ख़्वाब भी मिरे रुख़्सत हैं रतजगा भी गया
– परवीन शाकिर
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