(30)+Allama iqbal shayari ।ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले ख़ुदा

Allama Iqbal shayari in Hindi

Allama Iqbal shayari –(अल्लामा इक़बाल की शायरी, जो उर्दू और फ़ारसी में लिखी गई है, हिंदी में भी बहुत लोकप्रिय है। उनकी शायरी में देशभक्ति, प्रेम, दर्शन, और सामाजिक मुद्दों पर विचार मिलते हैं। हमने इस पोस्ट के माध्यम से कुछ उनके शायरी आपके लिए लिए है। जो आपको पसंद आयेगा।

Life allama iqbal shayari in Hindi


सौ सौ उमीदें बँधती है इक इक निगाह पर

मुझ को न ऐसे प्यार से देखा करे कोई.!


तुम से छुट कर भी तुम्हें भूलना आसान न था

तुम को ही याद किया तुम को भुलाने के लिए.!


जो किए ही नहीं कभी मैंने,

वो भी वादे निभा रहा हूँ मैं.

मुझसे फिर बात कर रही है वो,

फिर से बातों मे आ रहा हूँ मैं !


मुझ सा कोई शख्स नादान भी न हो.

करे जो इश्क़ कहता है नुकसान भी न हो.


ये कफन, ये क़ब्र, ये जनाज़े रस्म ए

शरीयत है इकबाल मार तो इंसान तब

ही जाता है जब याद करने वाला कोई ना हो..!


मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना

हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा..!


तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ

मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ

भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी

बड़ा बे-अदब हूँ , सज़ा चाहता हूँ..!


तिरे इश्क़ की ”इंतिहा” चाहता हूँ

मिरी ”सादगी” देख क्या चाहता हूँ

ये जन्नत “मुबारक” रहे ज़ाहिदों को

कि मैं आप का सामना चाहता हूँ ।


दीप ऐसे बुझे फिर जले ही नहीं

ज़ख्म इतने मिले फिर सिले भी नहीं

व्यर्थ किस्मत पे रोने से क्या फायदा

सोच लेना कि हम तुम मिले भी नहीं।


मकानी हूँ कि आज़ाद-ए-मकां हूँ,

जहां में हूँ कि खुद सारा जहां हूँ,

वो अपनी ला-मकानी में रहे मस्त,

मुझे इतना बता दें मैं कहां हूँ.



दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है,

फिर इस में अजब क्या कि तू बेबाक नहीं है!


तिरे इश्क़ की “इंतिहा ” चाहता हूँ

मिरी “सादगी” देख क्या चाहता हूँ

ये जन्नत “मुबारक” रहे ज़ाहिदों को

कि मैं आप का सामना चाहता हूँ.!


“कहीं पर जग लिए तुम बिन, कहीं पर सो लिए तुम

बिन. भरी महफिल में भी अक्सर, अकेले हो लिए तुम

बिन ये पिछले चंद वर्षों की कमाई साथ है अपने कभी

तो हंस लिए तुम बिन, कभी तो रो लिए तुम बिन.”


चिंगारी आजादी की ‘सुलगती’ मेरे जश्न में है।

इंकलाब की ज्वालाएं लिपटी मेरे बदन में है।

मौत जहां जन्नत हो यह बात मेरे वतन में है।

कुर्बानी का जज्बा “जिंदा” मेरे कफन में है।


सितारों से आगे जहाँ और भी हैं

अभी इश्क़ के “इम्तिहाँ” और भी हैं

तही ”ज़िंदगी” से नहीं ये फ़ज़ाएँ

यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं.!


जलाम-ए-बहर में खो कर सँभल जा

तड़प जा पेच खा खा कर बदल जा

नहीं साहिल तिरी किस्मत में ऐ मौज

उभर कर जिस तरफ चाहे निकल जा.. ।


मजनूँ ने शहर छोड़ा तो सहरा भी छोड़ दे

नज़्ज़ारे की हवस हो तो लैला भी छोड़ दे


तिरे सीने में दम है दिल नहीं है,

तिरा दम गर्मी-ए-महफ़िल नहीं है,

गुज़र जा अक़्ल से आगे ये नूर,

चराग-ए-राह है मंज़िल नहीं है!


जानते हो तुम भी फिर भी ”अजनान” बनते हो

इस तरह हमें “परेशान” करते हो.

पूछते हो तुम्हे किया पसंद है

जवाब खुद हो फिर भी “सवाल” करते हो..


Allama iqbal shayari urdu

 

ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को

कि मैं आप का सामना चाहता हूँ

भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी

बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ


ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले

ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है!


नशा पिला के गिराना तो सब को आता है

मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी!


अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी

तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन।


असर करे न करे सुन तो ले मिरी फ़रियाद

नहीं है दाद का तालिब ये बंदा-ए-आज़ाद।


मुझ सा कोई शख्स नादान भी न हो.

करे जो इश्क़ कहता है नुकसान भी न हो.


तुम से छुट कर भी तुम्हें भूलना आसान न था

तुम को ही याद किया तुम को भुलाने के लिए.


किन राहों से दूर है मंज़िल कौन सा रस्ता आसाँ है

हम जब थक कर रुक जायेंगे औरों को समझायेंगे.!


बड़े बड़े ग़म खड़े हुए थे रास्ता रोके राहों में

छोटी-छोटी ख़ुशियों से ही हम ने दिल को शाद किया


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