50 + Emotional Love Poem in Hindi | Poetry in hindi- Poetry quotes

Love poem in Hindi:– हेलो दोस्तों आज हमने इस पोस्ट में बहुत ही बढ़िया love poetry shayari  लाये है जिसे पढ़कर आपको बहुत ही अच्छा लगेगा | आप इस पोस्ट को पढ़े और अपने दोस्तों के साथ शेयर करे और अपने व्हाट्सप्प और फेसबुक पर भी शेयर करे | 

love poetry in hindi
Life poetry in Hindi


*** हाल-ए-दिल मुझ से न पूछो *** 


यूँ तो आपस में बिगड़ते हैं ख़फ़ा होते हैं 

मिलने वाले कहीं उल्फ़त में जुदा होते हैं 


हैं ज़माने में अजब चीज़ मोहब्बत वाले 

दर्द ख़ुद बनते हैं ख़ुद अपनी दवा होते हैं 


हाल-ए-दिल मुझ से न पूछो मिरी नज़रें देखो 

राज़ दिल के तो निगाहों से अदा होते हैं 


मिलने को यूँ तो मिला करती हैं सब से आँखें 

दिल के आ जाने के अंदाज़ जुदा होते हैं 


ऐसे हँस हँस के न देखा करो सब की जानिब 

लोग ऐसी ही अदाओं पे फ़िदा होते हैं 

       -मजरूह सुल्तानपुरी


*** तू लाख बेवफ़ा है मगर***  


वो आएगा नुमाइश ए सामान देखकर

क्यों कारोबार छोड़ दूं नुक़सान देखकर


नख़रे उठा रही हूं तुम्हारी तलाश के

रुकती नहीं हूं रास्ता वीरान देखकर


    वो तेरा लम्स वो तिरि बाहों की ख़ुशबुएं

लौटी हूं जैसे कोई गुलिस्तान देखकर


तू लाख बेवफ़ा है मगर सर उठा के चल

दिल रो पड़ेगा तुझको पशेमान देखकर


ज़ाहिर न हो कि मुझसे तेरा वास्ता भी है

सबकी नज़र है तुझपे मेरी जान देखकर

           -हिमांशी बाबरा


*** ज़िंदगी भर के लिए रूठ के जाने वाले ***  



यूँ बड़ी देर से पैमाना लिए बैठा हूँ 

कोई देखे तो ये समझे कि पिए बैठा हूँ 


आख़िरी नाव न आई तो कहाँ जाऊँगा 

शाम से पार उतरने के लिए बैठा हूँ 


मुझ को मालूम है सच ज़हर लगे है सब को 

बोल सकता हूँ मगर होंट सिए बैठा हूँ 


लोग भी अब मिरे दरवाज़े पे कम आते हैं 

मैं भी कुछ सोच के ज़ंजीर दिए बैठा हूँ 


ज़िंदगी भर के लिए रूठ के जाने वाले 

मैं अभी तक तिरी तस्वीर लिए बैठा हूँ 


कम से कम रेत से आँखें तो बचेंगी ‘क़ैसर’ 

मैं हवाओं की तरफ़ पीठ किए बैठा हूँ 

     –  क़ैसर उल जाफ़री 



*** किसी दिन ज़िंदगानी में ***  


किसी दिन ज़िंदगानी में करिश्मा क्यूँ नहीं होता 

मैं हर दिन जाग तो जाता हूँ ज़िंदा क्यूँ नहीं होता 


मिरी इक ज़िंदगी के कितने हिस्से-दार हैं लेकिन 

किसी की ज़िंदगी में मेरा हिस्सा क्यूँ नहीं होता 


जहाँ में यूँ तो होने को बहुत कुछ होता रहता है 

मैं जैसा सोचता हूँ कुछ भी वैसा क्यूँ नहीं होता 


हमेशा तंज़ करते हैं तबीअत पूछने वाले 

तुम अच्छा क्यूँ नहीं करते मैं अच्छा क्यूँ नहीं होता 


ज़माने भर के लोगों को किया है मुब्तला तू ने 

जो तेरा हो गया तू भी उसी का क्यूँ नहीं होता 

             -राजेश रेड्डी


Heart touching love poem in hindi for girlfriend


*** वो क्यूँ गया है ये भी बता कर नहीं गया ***  


रुख़्सत हुआ तो आँख मिला कर नहीं गया 

वो क्यूँ गया है ये भी बता कर नहीं गया 


वो यूँ गया कि बाद-ए-सबा याद आ गई 

एहसास तक भी हम को दिला कर नहीं गया 


यूँ लग रहा है जैसे अभी लौट आएगा 

जाते हुए चराग़ बुझा कर नहीं गया 


बस इक लकीर खींच गया दरमियान में 

दीवार रास्ते में बना कर नहीं गया 


शायद वो मिल ही जाए मगर जुस्तुजू है शर्त 

वो अपने नक़्श-ए-पा तो मिटा कर नहीं गया 


घर में है आज तक वही ख़ुश्बू बसी हुई 

लगता है यूँ कि जैसे वो आ कर नहीं गया 


तब तक तो फूल जैसी ही ताज़ा थी उस की याद 

जब तक वो पत्तियों को जुदा कर नहीं गया 


रहने दिया न उस ने किसी काम का मुझे 

और ख़ाक में भी मुझ को मिला कर नहीं गया 


वैसी ही बे-तलब है अभी मेरी ज़िंदगी 

वो ख़ार-ओ-ख़स में आग लगा कर नहीं गया 


‘शहज़ाद’ ये गिला ही रहा उस की ज़ात से 

जाते हुए वो कोई गिला कर नहीं गया 

        – शहज़ाद अहमद


 *** हम इश्क़ के मारों का ***  


 इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है 

सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है 


ये किस का तसव्वुर है ये किस का फ़साना है 

जो अश्क है आँखों में तस्बीह का दाना है 


हम इश्क़ के मारों का इतना ही फ़साना है 

रोने को नहीं कोई हँसने को ज़माना है 


वो और वफ़ा-दुश्मन मानेंगे न माना है 

सब दिल की शरारत है आँखों का बहाना है 


जो उन पे गुज़रती है किस ने उसे जाना है 

अपनी ही मुसीबत है अपना ही फ़साना है 


क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है 

हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है 


आँखों में नमी सी है चुप चुप से वो बैठे हैं 

नाज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है 


या वो थे ख़फ़ा हम से या हम हैं ख़फ़ा उन से 

कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है 


ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे 

इक आग का दरिया है और डूब के जाना है 


ख़ुद हुस्न-ओ-शबाब उन का क्या कम है रक़ीब अपना 

जब देखिए अब वो हैं आईना है शाना है 


तस्वीर के दो रुख़ हैं जाँ और ग़म-ए-जानाँ 

इक नक़्श छुपाना है इक नक़्श दिखाना है 


ये हुस्न-ओ-जमाल उन का ये इश्क़-ओ-शबाब अपना 

जीने की तमन्ना है मरने का ज़माना है 


मुझ को इसी धुन में है हर लहज़ा बसर करना 

अब आए वो अब आए लाज़िम उन्हें आना है 


ख़ुद्दारी-ओ-महरूमी महरूमी-ओ-ख़ुद्दारी 

अब दिल को ख़ुदा रक्खे अब दिल का ज़माना है 


अश्कों के तबस्सुम में आहों के तरन्नुम में 

मा’सूम मोहब्बत का मा’सूम फ़साना है 


आँसू तो बहुत से हैं आँखों में ‘जिगर’ लेकिन 

बंध जाए सो मोती है रह जाए सो दाना है

       -जिगर मुरादाबादी


 *** तरस गए तुझे एक बार देखने के लिए *** 



खड़े हैं मुझको ख़रीदार देखने के लिए

मै घर से निकला था बाज़ार देखने के लिए


हज़ार बार हज़ारों की सम्त देखते हैं

तरस गए तुझे एक बार देखने के लिए


क़तार में कई नाबीना लोग शामिल हैं

अमीरे-शहर का दरबार देखने के लिए


जगाए रखता हूँ सूरज को अपनी पलकों पर

ज़मीं को ख़्वाब से बेदार देखने के लिए


अजीब शख़्स है लेता है जुगनुओ से ख़िराज़

शबों को अपने चमकदार देखने के लिए


हर एक हर्फ़ से चिंगारियाँ निकलती हैं

कलेजा चाहिए अख़बार देखने के लिए

          -राहत इंदौरी


*** ग़ैर की नज़रों से बच कर *** 


चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है 

हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है 


बा-हज़ाराँ इज़्तिराब ओ सद-हज़ाराँ इश्तियाक़ 

तुझ से वो पहले-पहल दिल का लगाना याद है 


बार बार उठना उसी जानिब निगाह-ए-शौक़ का 

और तिरा ग़ुर्फ़े से वो आँखें लड़ाना याद है 


तुझ से कुछ मिलते ही वो बेबाक हो जाना मिरा 

और तिरा दाँतों में वो उँगली दबाना याद है 


खींच लेना वो मिरा पर्दे का कोना दफ़अ’तन 

और दुपट्टे से तिरा वो मुँह छुपाना याद है 


जान कर सोता तुझे वो क़स्द-ए-पा-बोसी मिरा 

और तिरा ठुकरा के सर वो मुस्कुराना याद है 


तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़-राह-ए-लिहाज़ 

हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है 


जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना न था 

सच कहो कुछ तुम को भी वो कार-ख़ाना याद है 


ग़ैर की नज़रों से बच कर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ 

वो तिरा चोरी-छुपे रातों को आना याद है 


आ गया गर वस्ल की शब भी कहीं ज़िक्र-ए-फ़िराक़ 

वो तिरा रो रो के मुझ को भी रुलाना याद है 


दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए 

वो तिरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है 


आज तक नज़रों में है वो सोहबत-ए-राज़-ओ-नियाज़ 

अपना जाना याद है तेरा बुलाना याद है 


मीठी मीठी छेड़ कर बातें निराली प्यार की 

ज़िक्र दुश्मन का वो बातों में उड़ाना याद है 


देखना मुझ को जो बरगश्ता तो सौ सौ नाज़ से 

जब मना लेना तो फिर ख़ुद रूठ जाना याद है 


चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह 

मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है 


शौक़ में मेहंदी के वो बे-दस्त-ओ-पा होना तिरा 

और मिरा वो छेड़ना वो गुदगुदाना याद है 


बावजूद-ए-इद्दिया-ए-इत्तिक़ा ‘हसरत’ मुझे 

आज तक अहद-ए-हवस का वो फ़साना याद है 

           –हसरत मोहानी


2 line love poetry in hindi


 *** अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं ***  


सितारों से आगे जहाँ और भी हैं 

अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं 


तही ज़िंदगी से नहीं ये फ़ज़ाएँ 

यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं 


क़नाअत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर 

चमन और भी आशियाँ और भी हैं 


अगर खो गया इक नशेमन तो क्या ग़म 

मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं 


तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा 

तिरे सामने आसमाँ और भी हैं 


इसी रोज़ ओ शब में उलझ कर न रह जा 

कि तेरे ज़मान ओ मकाँ और भी हैं 


गए दिन कि तन्हा था मैं अंजुमन में 

यहाँ अब मिरे राज़-दाँ और भी हैं 

         – अल्लामा इक़बाल


Life poetry in Hindi


*** ज़ुल्फ़ें सफ़ेद हो गईं उन्नीस साल में *** 


दिल ऐसे मुब्तला हुआ तेरे मलाल में

ज़ुल्फ़ें सफ़ेद हो गईं उन्नीस साल में


वो ऐसे रो रहा था मेरा हाल देखकर

आया हुआ हो जैसे किसी इंतेक़ाल में


इक बार मुझको अपनी निगेहबानी सौंप दे

उम्रें गुज़ार दूंगी तेरी देखभाल में


ये बात जानती हूं मगर मानती नहीं

दिन कट रहा है आज भी तेरे ख़याल में


वो तो सवाल पूछ के आगे निकल गया

अटकी हुई हूं मैं मगर उसके सवाल में

         -हिमांशी बाबरा


*** चराग़ों की तरह आँखें जलें *** 


हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए 

चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाए 


कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए 

तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए 


अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर 

मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए 


समुंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दे हम को 

हवाएँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए 


मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा 

परिंदा आसमाँ छूने में जब नाकाम हो जाए 


उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो 

न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए 


मैं यूँ भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ 

कोई मासूम क्यूँ मेरे लिए बदनाम हो जाए 

              -बशीर बद्र


Life poetry in Hindi

 *** आग तेरी है न मेरी *** 


उस पे पत्थर खाके क्या बीती ज़फ़र देखेगा कौन

फल तो सब ले जाएँगे ज़ख़्मे-शजर देखेगा कौन


आग तेरी है न मेरी, आग को मत दे हवा

राख मेरा घर हुआ तो तेरा घर देखेगा कौन


अपने बुत अपनी ही झोली में छुपाकर लौट जा

लोग अन्धे हैं यहाँ तेरा हुनर देखेगा कौन


अपनी-अपनी नहर के अतराफ़ बैठे हैं सभी

प्यास की सूली पे हम प्यासों के सर देखेगा कौन


घर में पहुँचूँगा तो सब गठरी टटोलेंगे मेरी

आँख में चुभती हुई गर्दे-सफ़र देखेगा कौन

         -ज़फ़र गोरखपुरी


*** इक जुदाई का वो लम्हा *** 


शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं 

इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं 


फिर वही तल्ख़ी-ए-हालात मुक़द्दर ठहरी 

नश्शे कैसे भी हों कुछ दिन में उतर जाते हैं 


इक जुदाई का वो लम्हा कि जो मरता ही नहीं 

लोग कहते थे कि सब वक़्त गुज़र जाते हैं 


घर की गिरती हुई दीवारें ही मुझ से अच्छी 

रास्ता चलते हुए लोग ठहर जाते हैं 


हम तो बे-नाम इरादों के मुसाफ़िर हैं ‘वसीम’ 

कुछ पता हो तो बताएँ कि किधर जाते हैं 

             -वसीम बरेलवी


*** आप इस तरह तो होश उड़ाया न कीजिए *** 


आप इस तरह तो होश उड़ाया न कीजिए 

यूँ बन सँवर के सामने आया न कीजिए 


या सर पे आदमी को बिठाया न कीजिए 

या फिर नज़र से उस को गिराया न कीजिए 


यूँ मध-भरी निगाह उठाया न कीजिए 

पीना हराम है तो पिलाया न कीजिए 


कहिए तो आप महव हैं किस के ख़याल में 

हम से तो दिल की बात छुपाया न कीजिए 


तेग़-ए-सितम से काम जो लेना था ले चुके 

अहल-ए-वफ़ा का यूँ तो सफ़ाया न कीजिए 


हम आप के घर आप का आएँ हज़ार बार 

लेकिन किसी की बात में आया न कीजिए 


उठ जाएँगे हम आप की महफ़िल से आप ही 

दुश्मन के रू-ब-रू तो बिठाया न कीजिए 


दिल दूर हों तो हाथ मिलाने से फ़ाएदा 

रस्मन किसी से हाथ मिलाया न कीजिए 


महरूम हों लताफ़त-ए-फ़ितरत से जो ‘नसीर’ 

उन बे-हिसों को शे’र सुनाया न कीजिए 

        –  पीर नसीरुद्दीन नसीर


sad poetry in hindi


motivational poetry in hindi

*** प्यार के दुश्मन कभी तो *** 


हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें 

ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें 


तुम ने मेरे घर न आने की क़सम खाई तो है 

आँसुओं से भी कहो आँखों में आना छोड़ दें 


प्यार के दुश्मन कभी तो प्यार से कह के तो देख 

एक तेरा दर ही क्या हम तो ज़माना छोड़ दें 


घोंसले वीरान हैं अब वो परिंदे ही कहाँ 

इक बसेरे के लिए जो आब-ओ-दाना छोड़ दें 

              -वसीम बरेलवी


 *** दिन एक सितम एक सितम *** 


मेरे ही लहू पर गुज़र-औक़ात करो हो 

मुझ से ही अमीरों की तरह बात करो हो 


दिन एक सितम एक सितम रात करो हो 

वो दोस्त हो दुश्मन को भी तुम मात करो हो 


हम ख़ाक-नशीं तुम सुख़न-आरा-ए-सर-ए-बाम 

पास आ के मिलो दूर से क्या बात करो हो 


हम को जो मिला है वो तुम्हीं से तो मिला है 

हम और भुला दें तुम्हें क्या बात करो हो 


यूँ तो कभी मुँह फेर के देखो भी नहीं हो 

जब वक़्त पड़े है तो मुदारात करो हो 


दामन पे कोई छींट न ख़ंजर पे कोई दाग़ 

तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो 


बकने भी दो ‘आजिज़’ को जो बोले है बके है 

दीवाना है दीवाने से क्या बात करो हो 

       -कलीम आजिज़


*** तुम आँखों से मुझे ***  


बदन कजला गया तो दिल की ताबानी से निकलूँगा 

मैं सूरज बन के इक दिन अपनी पेशानी से निकलूँगा 


नज़र आ जाऊँगा मैं आँसुओं में जब भी रोओगे 

मुझे मिट्टी किया तुम ने तो मैं पानी से निकलूँगा 


तुम आँखों से मुझे जाँ के सफ़र की मत इजाज़त दो 

अगर उतरा लहू में फिर न आसानी से निकलूँगा 


मैं ऐसा ख़ूबसूरत रंग हूँ दीवार का अपनी 

अगर निकला तो घर वालों की नादानी से निकलूँगा 


ज़मीर-ए-वक़्त में पैवस्त हूँ मैं फाँस की सूरत 

ज़माना क्या समझता है कि आसानी से निकलूँगा 


यही इक शय है जो तन्हा कभी होने नहीं देती 

‘ज़फ़र’ मर जाऊँगा जिस दिन परेशानी से निकलूँगा 

            – ज़फ़र गोरखपुरी


motivational poetry in hindi


*** मैं फ़क़त तेरा हूं *** 


मैं आरज़ू तो नही हूं मगर तू पाल के देख

मोहब्बतों में कोई रास्ता निकाल के देख


मैं अपने दोनों तरफ़ एक सा हूं तेरे लिए

किसी से शर्त लगा फिर मुझे उछाल के देख


मैं अपने पांव के नाख़ुन से सर के बालों तक

फ़क़त तेरा हूं कहीं से भी खोल खाल के देख

           -अबरार काशिफ़


 *** फूल इस बार खिले हैं बड़ी तय्यारी से *** 


जा के ये कह दे कोई शोलों से चिंगारी से 

फूल इस बार खिले हैं बड़ी तय्यारी से 


अपनी हर साँस को नीलाम किया है मैं ने 

लोग आसान हुए हैं बड़ी दुश्वारी से 


ज़ेहन में जब भी तिरे ख़त की इबारत चमकी 

एक ख़ुश्बू सी निकलने लगी अलमारी से 


शाहज़ादे से मुलाक़ात तो ना-मुम्किन है 

चलिए मिल आते हैं चल कर किसी दरबारी से 


बादशाहों से भी फेंके हुए सिक्के न लिए 

हम ने ख़ैरात भी माँगी है तो ख़ुद्दारी से 

         – राहत इंदौरी


motivational life poetry in hindi

 *** आज हम बिछड़े हैं तो कितने रंगीले हो गए *** 


तुम से मिलते ही बिछड़ने के वसीले हो गए

दिल मिले तो जान के दुश्मन क़बीले हो गए


आज हम बिछड़े हैं तो कितने रंगीले हो गए

मेरी आँखें सुर्ख़ तेरे हाथ पीले हो गए


अब तिरी यादों के निश्तर भी हुए जाते हैं कुंद

हम को कितने रोज़ अपने जख़्म छीले हो गए


कब की पत्थर हो चुकी थीं मुंतज़िर आँखें मगर

छू के जब देखा तो मेरे हाथ गीले हो गए


अब कोई उम्मीद है ‘शाहिद’ न कोई आरज़ू

आसरे टूटे तो जीने के वसीले हो गए

           – शाहिद कबीर

*** तू ने देखा नहीं आईने से आगे *** 


अपने हाथों की लकीरों में सजा ले मुझ को 

मैं हूँ तेरा तू नसीब अपना बना ले मुझ को 


मैं जो काँटा हूँ तो चल मुझ से बचा कर दामन 

मैं हूँ गर फूल तो जूड़े में सजा ले मुझ को 


तर्क-ए-उल्फ़त की क़सम भी कोई होती है क़सम 

तू कभी याद तो कर भूलने वाले मुझ को 


मुझ से तू पूछने आया है वफ़ा के मा’नी 

ये तिरी सादा-दिली मार न डाले मुझ को 


मैं समुंदर भी हूँ मोती भी हूँ ग़ोता-ज़न भी 

कोई भी नाम मिरा ले के बुला ले मुझ को 


तू ने देखा नहीं आईने से आगे कुछ भी 

ख़ुद-परस्ती में कहीं तू न गँवा ले मुझ को 


बाँध कर संग-ए-वफ़ा कर दिया तू ने ग़र्क़ाब 

कौन ऐसा है जो अब ढूँढ निकाले मुझ को 


ख़ुद को मैं बाँट न डालूँ कहीं दामन दामन 

कर दिया तू ने अगर मेरे हवाले मुझ को 


मैं खुले दर के किसी घर का हूँ सामाँ प्यारे 

तू दबे-पाँव कभी आ के चुरा ले मुझ को 


कल की बात और है मैं अब सा रहूँ या न रहूँ 

जितना जी चाहे तिरा आज सता ले मुझ को 


बादा फिर बादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ ‘क़तील’ 

शर्त ये है कोई बाँहों में सँभाले मुझ को 

               – क़तील शिफ़ाई 


urdu poetry in hindi

 *** चाँदनी देख के चेहरे को छुपाने वाले *** 


शाअपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है 

इक नज़र मेरी तरफ़ भी तिरा जाता क्या है 


मेरी रुस्वाई में वो भी हैं बराबर के शरीक 

मेरे क़िस्से मिरे यारों को सुनाता क्या है 


पास रह कर भी न पहचान सका तू मुझ को 

दूर से देख के अब हाथ हिलाता क्या है 


ज़ेहन के पर्दों पे मंज़िल के हयूले न बना 

ग़ौर से देखता जा राह में आता क्या है 


ज़ख़्म-ए-दिल जुर्म नहीं तोड़ भी दे मोहर-ए-सुकूत 

जो तुझे जानते हैं उन से छुपाता क्या है 


सफ़र-ए-शौक़ में क्यूँ काँपते हैं पाँव तिरे 

आँख रखता है तो फिर आँख चुराता क्या है 


उम्र भर अपने गरेबाँ से उलझने वाले 

तू मुझे मेरे ही साए से डराता क्या है 


चाँदनी देख के चेहरे को छुपाने वाले 

धूप में बैठ के अब बाल सुखाता क्या है 


मर गए प्यास के मारे तो उठा अब्र-ए-करम 

बुझ गई बज़्म तो अब शम्अ जलाता क्या है 


मैं तिरा कुछ भी नहीं हूँ मगर इतना तो बता 

देख कर मुझ को तिरे ज़ेहन में आता क्या है 


तेरा एहसास ज़रा सा तिरी हस्ती पायाब 

तो समुंदर की तरह शोर मचाता क्या है 


तुझ में कस-बल है तो दुनिया को बहा कर ले जा 

चाय की प्याली में तूफ़ान उठाता क्या है 


तेरी आवाज़ का जादू न चलेगा उन पर 

जागने वालों को ‘शहज़ाद’ जगाता क्या है 

                – शहज़ाद अहमद


*** मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से ***  


ताज तेरे लिए इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही 

तुझ को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही 


मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से 

बज़्म-ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या मअ’नी 

सब्त जिस राह में हों सतवत-ए-शाही के निशाँ 

उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मअ’नी 


मेरी महबूब पस-ए-पर्दा-ए-तश्हीर-ए-वफ़ा 

तू ने सतवत के निशानों को तो देखा होता 

मुर्दा-शाहों के मक़ाबिर से बहलने वाली 

अपने तारीक मकानों को तो देखा होता 


अन-गिनत लोगों ने दुनिया में मोहब्बत की है 

कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उन के 

लेकिन उन के लिए तश्हीर का सामान नहीं 

क्यूँकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़्लिस थे 


ये इमारात ओ मक़ाबिर ये फ़सीलें ये हिसार 

मुतलक़-उल-हुक्म शहंशाहों की अज़्मत के सुतूँ 

सीना-ए-दहर के नासूर हैं कोहना नासूर 

जज़्ब है उन में तिरे और मिरे अज्दाद का ख़ूँ 


मेरी महबूब उन्हें भी तो मोहब्बत होगी 

जिन की सन्नाई ने बख़्शी है उसे शक्ल-ए-जमील 

उन के प्यारों के मक़ाबिर रहे बेनाम-ओ-नुमूद 

आज तक उन पे जलाई न किसी ने क़िंदील 


ये चमन-ज़ार ये जमुना का किनारा ये महल 

ये मुनक़्क़श दर ओ दीवार ये मेहराब ये ताक़ 

इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर 

हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़ 

       – साहिर लुधियानवी


2 line love poetry in hindi

*** इक ज़ख़्म मुझ को चाहिए *** 


अ’र्ज़-ए-अलम ब-तर्ज़-ए-तमाशा भी चाहिए 

दुनिया को हाल ही नहीं हुलिया भी चाहिए 


ऐ दिल किसी भी तरह मुझे दस्तियाब कर 

जितना भी चाहिए उसे जैसा भी चाहिए 


दुख ऐसा चाहिए कि मुसलसल रहे मुझे 

और उस के साथ साथ अनोखा भी चाहिए 


इक ज़ख़्म मुझ को चाहिए मेरे मिज़ाज का 

या’नी हरा भी चाहिए गहरा भी चाहिए 


इक ऐसा वस्फ़ चाहिए जो सिर्फ़ मुझ में हो 

और उस में फिर मुझे यद-ए-तूला भी चाहिए 


रब्ब-ए-सुख़न मुझे तिरी यकताई की क़सम 

अब कोई सुन के बोलने वाला भी चाहिए 


क्या है जो हो गया हूँ मैं थोड़ा बहुत ख़राब 

थोड़ा बहुत ख़राब तो होना भी चाहिए 


हँसने को सिर्फ़ होंट ही काफ़ी नहीं रहे 

‘जव्वाद-शैख़’ अब तो कलेजा भी चाहिए 

          जव्वाद शेख़


*** इक ज़ख़्म मुझ को चाहिए *** 


हर शम्मा बुझी रफ़्ता रफ़्ता हर ख़्वाब लुटा धीरे धीरे

शीशा न सही पत्थर भी न था दिल टूट गया धीरे धीरे


बरसों में मरासिम बनते हैं लम्हों में भला क्या टूटेंगे

तू मुझसे बिछड़ना चाहे तो दीवार उठा धीरे धीरे


एहसास हुआ बर्बादी का जब सारे घर में धूल उड़ी

आई है हमारे आंगन में पतझड़ की हवा धीरे धीरे


दिल कैसे जला किस वक़्त जला हमको भी पता आख़िर में चला

फैला है धुआं चुपके चुपके सुलगी है चिता धीरे धीरे


वो हाथ पराए हो भी गए अब दूर का रिश्ता है क़ैसर

आती है मेरी तन्हाई में खुशबू ए हिना धीरे धीरे 


        – क़ैसर उल जाफ़री 


motivational poetry in hindi

*** ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से *** 


सर से पॉव तक वो गुलाबों का शजर लगता है 

बा-वज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता है 


मैं तिरे साथ सितारों से गुज़र सकता हूँ 

कितना आसान मोहब्बत का सफ़र लगता है 


मुझ में रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा 

ख़ुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है 


बुत भी रक्खे हैं नमाज़ें भी अदा होती हैं 

दिल मेरा दिल नहीं अल्लाह का घर लगता है 


ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं 

पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है 

             -बशीर बद्र


*** सिलसिला मोहब्बत का *** 


जिस्म-ओ-जाँ में दर आई इस क़दर अज़िय्यत क्यूँ 

ज़िंदगी भला तुझ से हो रही है वहशत क्यूँ 


सिलसिला मोहब्बत का सिर्फ़ ख़्वाब ही रहता 

अपने दरमियाँ आख़िर आ गई हक़ीक़त क्यूँ 


फ़ैसला बिछड़ने का कर लिया है जब तुम ने 

फिर मिरी तमन्ना क्या फिर मिरी इजाज़त क्यूँ 


ये अजीब उलझन है किस से पूछने जाएँ 

आइने में रहती है सिर्फ़ एक सूरत क्यूँ 


कर्र-ओ-फ़र्र से निकले थे जो समेटने दुनिया 

भर के अपने दामन में आ गए नदामत क्यूँ 


आप से मुख़ातिब हूँ आप ही के लहजे में 

फिर ये बरहमी कैसी और ये शिकायत क्यूँ 

          -अंबरीन हसीब अंबर


motivational poetry in hindi

**किसी की चाह न थी दिल में **


नज़र मिला न सके उस से इस निगाह के बाद

वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद


मैं कैसे और किसी सम्त मोड़ता ख़ुद को 

किसी की चाह न थी दिल में तेरी चाह के बाद


हवस ने तोड़ दी बरसों की साधना मेरी 

गुनाह क्या है ये जाना मगर गुनाह के बाद


ज़मीर काँप तो जाता है आप कुछ भी कहें 

वो हो गुनाह से पहले कि हो गुनाह के बाद


कटी हुई थीं तनाबें तमाम रिश्तों की 

छुपाता सर मैं कहाँ तुझ से रस्म-ओ-राह के बाद


गवाह चाह रहे थे वो बे-गुनाही का 

ज़बाँ से कह न सका कुछ ख़ुदा गवाह के बाद

      -कृष्ण बिहारी नूर


Best poetry in hindi

*** ज़मीन माँ है ***  


हों लाख ज़ुल्म मगर बद-दुआ’ नहीं देंगे

ज़मीन माँ है ज़मीं को दग़ा नहीं देंगे


हमें तो सिर्फ़ जगाना है सोने वालों को

जो दर खुला है वहाँ हम सदा नहीं देंगे


रिवायतों की सफ़ें तोड़ कर बढ़ो वर्ना

जो तुम से आगे हैं वो रास्ता नहीं देंगे


यहाँ कहाँ तिरा सज्जादा आ के ख़ाक पे बैठ

कि हम फ़क़ीर तुझे बोरिया नहीं देंगे


शराब पी के बड़े तजरबे हुए हैं हमें

शरीफ़ लोगों को हम मशवरा नहीं देंगे

        – राहत इंदौरी


*** न गुल खिले हैं न उन से मिले *** 


तुम आए हो न शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है 

तलाश में है सहर बार बार गुज़री है 


जुनूँ में जितनी भी गुज़री ब-कार गुज़री है 

अगरचे दिल पे ख़राबी हज़ार गुज़री है 


हुई है हज़रत-ए-नासेह से गुफ़्तुगू जिस शब 

वो शब ज़रूर सर-ए-कू-ए-यार गुज़री है 


वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था 

वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है 


न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है 

अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है 


चमन पे ग़ारत-ए-गुल-चीं से जाने क्या गुज़री 

क़फ़स से आज सबा बे-क़रार गुज़री है 

        -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़


Poetry in hindi-


*** मैं दिल को ले के कहाँ निकलूँ *** 


पड़ी है रात कोई ग़म-शनास भी नहीं है 

शराब-ख़ाने में आधा गिलास भी नहीं है 


मैं दिल को ले के कहाँ निकलूँ इतनी रात गए 

मकान उस का कहीं आस-पास भी नहीं है 


किसी भी बात को ले कर उलझते रहते हैं 

ये मिलना-जुलना हम ऐसों को रास भी नहीं है 


यहाँ तो लड़कियाँ अच्छा सा घर भी चाहती हैं 

हमारे पास तो अच्छा लिबास भी नहीं है 


ये शहर तो बहुत अच्छा है अपने गाँव से 

कि राह चलतों का कोई त्रास भी नहीं है 

           – इस्माईल राज़


love poem in hindi for girlfriend

 *** यहाँ पे कोई वफ़ा की बातें नहीं करेगा *** 


बग़ैर मतलब के मेहरबानी नहीं चलेगी 

ग़रीब लोगों में बद-गुमानी नहीं चलेगी


यहाँ पे कोई वफ़ा की बातें नहीं करेगा 

हमारी महफ़िल में बद-ज़बानी नहीं चलेगी 


अब अपने लहजे में शेर कहने पड़ेंगे सब को 

पराए लहजों की तर्जुमानी नहीं चलेगी 


ज़रा अदब से बुज़ुर्ग लोगों से बात कीजे 

ज़ियादा दिन तक ये नौजवानी नहीं चलेगी 


उदास लोगों को कौन हँसना सिखा रहा है 

ख़िज़ाँ के मौसम में बाग़बानी नहीं चलेगी 


अगर सलीक़ा पता हो तुम को तो इश्क़ करना 

बग़ैर मौसम के शेरवानी नहीं चलेगी 


यहाँ की छोड़ो ‘उबैद-अहमद’ वहाँ की सोचो 

ब-रोज़-ए-महशर कोई कहानी नहीं चलेगी 

                   -उबैद नजीबाबादी


*** मैं जो देखूं तो झपकती नहीं पलकें *** 


लोग तो लोग हैं लोगों की तरह देखते हैं

एक हम हैं उसे बच्चों की तरह देखते हैं


हमको दुनिया ने लकड़हारा समझ रक्खा है

हम तो पेड़ों को परिंदों की तरह देखते हैं


मैं जो देखूं तो झपकती नहीं पलकें मेरी

और हज़रत मुझे अंधों की तरह देखते हैं


तुम तो फिर गै़र हो तुमसे तो शिकायत कैसी

मेरे अपने मुझे गै़रों की तरह देखते हैं


तेरा दीदार क़ज़ा होता नहीं है हमसे

हम तुझे फ़र्ज़ नमाज़ों की तरह देखते हैं

         – हिमांशी बाबरा

Poetry in hindi-


*** इश्क़ की क़ैद में *** 


आज फिर गर्दिश-ए-तक़दीर पे रोना आया

दिल की बिगड़ी हुई तस्वीर पे रोना आया


इश्क़ की क़ैद में अब तक तो उमीदों पे जिए

मिट गई आस तो ज़ंजीर पे रोना आया


क्या हसीं ख़्वाब मुहब्बत ने दिखाया था हमें

खुल गई आँख तो ता’बीर पे रोना आया


पहले क़ासिद की नज़र देख के दिल सहम गया

फिर तिरी सुर्ख़ी-ए-तहरीर पे रोना आया


दिल गँवा कर भी मोहब्बत के मज़े मिल न सके

अपनी खोई हुई तक़दीर पे रोना आया


कितने मसरूर थे जीने की दुआओं पे ‘शकील’

जब मिले रंज तो तासीर पे रोना आया

          -शकील बदायुनी 


*** जीवन बहुत भारी***  


जीवन बहुत भारी है, मैं भावनाओं में बह रहा हूँ,

हाँ, मुझे फिर से तुमसे प्यार होने लगा है।


मैंने सोचा था कि जब उसने मेरा दिल तोड़ा तो जीवन रुक जाएगा,

लेकिन तुमने आकर मेरी जीवन लड़ी में उसके टुकड़े जोड़ दिए।


मैंने ख्वाब देखना छोड़ दिया था, अकेला रहने लगा था,

अब मुझे जीवन में तुम मिल गए हैं और मैं तुम्हारे ख्वाबों के समंदर में तैर रहा हूँ।


जीवन बहुत भारी है, मैं भावनाओं से बह रहा हूँ।


मेरे चेहरे की मुस्कान चली गई थी, ग़म निकाल आने लगे थे,

अब मेरी जीवन में सारी ख़ुशियाँ सच्ची हैं।


मोहब्बत शब्दों का खेल है। मुझे ऐसा लगा जैसे सबको बताऊं

कि आज मुझे फिर प्यार हो गया है और मैं तुम्हारे ख्वाबों में रहने लगा हूँ।


जीवन बहुत भारी है, मैं भावनाओं से बह रहा हूँ।

 :- Shyam Lahoti


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