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बचपन की ओ यादें ❣️

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जिसे कहते है न बचपन ऐ शबद सुनकर ऐसा लगता है,जैसे कई वषों का भूल हुआ चीज मुझे वापस मिला हो। हां ये सच है। क्योंकि बचपन एक ऐसा बीता हुआ बहुमूल्य समय है न जो कभी लौट कर नहीं आ सकता। इसमें वो यादें छुपी हुई होती है जिसको याद कर हम बहुत सारे गम को भूल जाते है। वो भी एक पल था जब लोग हमारी नादानियां को लोग गलती नही हमारा प्यार समझते थे, उस समय न हमारी कोई पाबंदी थी ना कोई रोक,हमारी मर्जी में ही हमारे माता-पिता की खुशी होती थी।


रोज सुबह होते ही मां की आवाज आना " वो मेरे बेटे कब तक सोन है स्कूल नही जाना क्या" ये सुनकर येस लगता जैसे रोज की तरह आज भी करवा जाना होगा। और स्कूल न जाने का सौ बहाने करना। कितना दिलचस्प होता था, उस समय मां को तो माना लेती पर निकमो दोस्तो को कौन समझता की आज मुझे आजादी मिलने वाली है। वो लोग आता और अपना कोई न कोई चाल चलता और साथ ले जाता ,मान गए तो ठीक नहीं तो चार दोस्त मिलता दो हाथ,दो पैर पकड़ता और तंग कर ले जाता। ये दृश्य जब याद आता है तो हंसी भी आया है और रोना भी। काश ओ दिन किसी फिल्म की उस सीन की तरह होता जिसे जब दिल करता उसे फिर पीछे कर उसका भरपूर आनंद लेता। लेकिन ये तो समय हो चला गया तो फिर वापस नहीं आ सकता। जैसे जैसे हमारी उम्र ढलती जाति है हमलोग अपना2 उलझने सुलझाने में लग जाते है,सारे दोस्त अपनी अपनी जिंदगी के रहस्य में गुम जाते है। फिर कहा गए वो दोस्त कहा गई वो बचपन का खेल सारा दिन एक साथ बैठना,सारा दिन बाढ़ की पाना में तैरना और जैसे कबाड़ी, क्रिकेट, गुली-डंडा जैसे न जाने कितने खेल खेलते थे। ओ पापा की डंडे की मार से बचने के लिए सारे गांव का चक्कर लगता और फिर वापस घर की छत पे छिप जाता।वो क्या दिन था और तो और वो गांव के अंतिम छोड़ में बैठ कर लड़किया को आते जाते तराना ये कैसे भुल सकते है।ये सब कारनामे उम्र के बदते पड़ाव में धुंधला होता जाता है।पर जब भी कभी किसी दोस्त से मिलते है हमारे चेहरे पर वही बचपन वाली खुशी वापस लौट आती है और साथ-साथ ऐसा महसूस करते है की चलो आज फिर एक बचपन जी लेते है।✌️


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